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बेहिस

बाहर तेज हवा चल रही थी.... और बर्फबारी भी हो रही थी। भीगा हुआ तो उसका भी मन था और कानों में किसी के बेवफाई भरे अल्फाज़ गूंज रहे थे। वह यकीन ही नहीं कर पा रही थी कि यह वही शख्स है जिसने कभी उसके अश्कों को पोंछ कर कहा था कि वह सिर्फ उसका है और किसी की कोई जगह नहीं है और भी न जाने  क्या  क्या। और कल उसके इक सवाल के पूछने पर कितनी आसानी से कह दिया कि मत रहो साथ। कितना कुछ टूट गया उसके अन्दर और किसी को कुछ सुनाई नहीं दिया। शायद मैं चुपके से टूटी थी या इस बार किरच किरच करके बिखरी थी जो किसी को सुनाई नहीं दिया। यूं तो सुनने वाले ख़ामोशी की आवाज़ भी  सुन लेते हैं गर दिलों में बेपनाह मुहब्बत हो और यहां तो उस शख्स के रूबरू मेरा कोई वजूद ही नहीं है। पर इक वक्त था जब ऐसा नहीं था पर वह सब बीत गया और बीता वक्त भला कहीं वापस आया है। अब वह बेहद थक चुकी थी.... टूट चुकी थी किसी की बेवफ़ाई के थपेड़ों से. खुद को समेटना चाहती थी....... पर वह लाख कोशिशों के बावजूद कुछ नहीं कर पा रही थी.... काश यूं टूट कर न चाहा होता उसने उस शख्स को..... इबादत की उसकी और इबादत तो रब की कई जाती है और रब कहीं बदलता है कभी? 

Darakti उम्मीदों के मीनार

उम्मीदें ख्वाहिशें जब दम तोड़ने लगती हैं तब बिखरने का एक सिलसिला शुरू हो जाता और यह सिलसिला तब तक नहीं रूकता जब तक आप किरच किरच कुछ इस तरह से नहीं बिखर जाते कि सिमटना  नामुमकिन हो जाता है और तकलीफ़ तब और नाकाबिल बर्दाश्त हो जाती है जब यूं बिखरने की वजह कोई ऐसा हो जो आपकी जिंदगी हो। पर ज़िन्दगी रूकती कहाँ है वह तो अनवरत चलती ही रहती है पर होती वो नाम की है...... काश हम रोक सकते इन बेकार और ख़ाली सांसों को..... बहुत सी शिकायतें बहुत से सवाल शामिल थे लरजते होंठो पर..... किसी के पास मेरे सवालों के जवाब देने का समय ही नहीं था या यूं कहें कि जवाब ही नहीं थे। अब कुछ बचा ही नहीं है ज़िन्दगी में बस इन्तज़ार ही है इन बेकार सी सांसों के ख़त्म होने का और इक नयी शुरूआत का जिसमें सवालों की कोई जगह ही न हो। 

शमशान

बाहर तेज हवाओं का शोर था और उसके मन में एकदम सन्नाटा, ऐसा सन्नाटा मानों मन के अन्दर इक श्मशान हो। यूं तो बरसों से वह अपने अन्दर पसरे सन्नाटे के साथ ही जी रही थी पर आज यह कुछ ज्यादा ही गहरा गया था। वह हर बार की तरह खुद को समेट नहीं पा रही थी बल्कि समेटने की कोशिश में ओर ओर बिखरती जा रही थी ।वह समझ नहीं पा रही थी जिस शख्स की हर बेवफ़ाई को उसने इक मुस्कुराहट के साथ भुला दिया........ आंखों देखी सच्चाईयों को इक वहम मानकर खुद को ही कोसा, दिल चाहे जा़र जा़र रो रहा हो पर होंठों की मुस्कान से दिल की तकलीफ़ को भी भुला दिया हो..... वह शख्स उससे यूं बदल सकता है? इतनी बेदर्दी से उसको और उसकी असहनीय तकलीफ़ को नज़रअंदाज कर सकता है? जब दर्द अपनी हदें लांघ गया तो वह ख़ामोश हो गयी इस डर से कि कहीं इश्क रुसवा न हो जाये..... पर यह भी उसका गुनाह हो गया। अपने उस गुनाह की सफाई देने पहुंची जो उसने किया ही नहीं था, तो बदले में उससे ही उसकी ख़ामोशी का सबब पूछा गया। क्या करती वह? सच बोल देती कि वह जानती थी कि कि उसके जरूरी काम क्या थे........ किसके आगोश में था वह। पर वह तो ऐसा भी नहीं कर सकती थी। किस्मत भी अजब त

रिश्तों की सच्चाई

कभी-कभी आप चाहे किसी से कितना ही दूर क्यों न हो...... यह दूरी चाहे हजारों किलोमीटरों की ही क्यों न हो पर रिश्तों में एहसास बना रहता है, पर यह तभी मुमकिन है जब उन रिश्तों में वफ़ा हो, इक दूसरे पर गहरा विश्वास हो और दोनों में शिद्दत से मुहब्बत हो। यही सारी बातें उसके ज़हन में चल रही थी और उसकी आंखों से निरन्तर अश्क बह रहे थे। यह अश्क ही बस उसका सहारा थे दिल को हल्का करने का, यही अलफा़जों का रूप भी ले लेते थे। इस कदर तन्हा थी वह। पिछले कुछ समय से उसकी तबियत नासाज़ थी और काफ़ी थी। कुछ समय तक उसकी फिक्र का नाटक चलता रहा और वह नासमझ समझ बैठी कि वह शख्स जो उसकी जिन्दगी है, उसे बेइंतहा प्यार करता है अब सब कुछ ठीक हो गया है। उसने तो उस दर्द उस तकलीफ को भी शुक्रिया अदा किया कि कम से कम इसी वजह से सब ठीक हुआ। पर वह बहुत नासमझ थी भूल गयी कि अपना सब कुछ गंवा कर भी उसको सच्ची मुहब्बत मयस्सर नहींहै। जिसे वह मुहब्बत और फिक्र समझ बैठी वह तो फ़कत वक्त गुजारना था क्योंकि और कोई शायद उस वक्त था नहीं या उससे मिलना मुमकिन नहीं था इसलिये कुछ पल भीख के मानिन्द उसके खाली दामन में आ गये। पिछली रात उसकी तबियत बे

झूठी जिन्दगी

कभी-कभी हम जिसे अपनी जिन्दगी से भी ज्यादा प्यार करते है उसके लिये और उसके साथ ही जीना बेहद कठिन हो जाता है..... पर क्या करें जीना फिर भी पड़ता है क्योंकि मौत तो मयस्सर नहीं होती बिना रब की मर्जी के। जो आपकी जिंदगी होता है वही जब आपको गैंरों के साथ मिलकर धोखा दे आपके साथ, आपकी भावनाओं के साथ इक safe game खेले तो अन्दर बहुत कुछ टूट कर बिखर जाता है। किसी शायर ने कहा भी है कि        "टूट कर चाहना और फिर टूट जाना          बात छोटी सी है, पर जान निकल जाती है।" और उसपर इक और सितम कि आपसे झूठे प्यार का नाटक करे...... आपकी भावनाओं से रोज खेले और बेहद फ़रेबी अन्दाज़ में आपसे  sorry कहे बिना यह जाहिर किये कि हर पल बेवफ़ाई करता है वह और बेहतरीन अदाकारी। क्या इतना ही आसां होता है किसी के सच्चे प्यार के साथ खिलवाड़ करना? पर लोगों की समझ में कहाँ आता है कि किसी को इतनी तकलीफ़ भी नहीं देनी चाहिए कि न चाहते हुए भी लबों पर आह आ जाये। पर एक सच यह भी है कि जो किसी को सच्चा प्यार करता है उसके लिये अपने लबों पर वह आह तो दूर शिकायत भी नहीं आने देता। ख़ामोशी से फ़ना हो जाता है उसकी फ़रेबी मुहब्

चंद अलफा़ज 3

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Krishna Bhajan

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