नादानियां
नादानियों की बात करते हैं आज.... एक उम्र होती है इसकी भी। इक रूमानी सा माहौल अपने इर्द-गिर्द नजर आने लगता है, सपनों की इक दुनिया बना लेते हैं हम और उसमें ही जीने लगते हैं हकीकत की दुनिया से कोसों दूर एक चमकती सी दुनिया में जहां हर तरफ रूमानियत होती है और आंखों में बेशुमार सपने। इक 17-18 बरस की लड़की भला कैसे अछूती रह सकती थी इस रुमानी माहौल से। उसने भी यह नादानी कर ली और मुहब्बत कर बैठी और फिर शुरू हुआ सपनों का सफर वह सफर जहां वह सपने बुनने लगी। एक अलग ही दुनिया बसा ली उसने और इक और नया काम किया "भरोसा" करना सीखा और उस भरोसे को जिन्दगी बना बैठी। हर शाम कुछ सच कुछ झूठ की कहानी बुनती और निकल पड़ती उस इक शख्स से मिलने जो उसकी जिन्दगी बन चुका था। वह भोली-भाली लड़की अपने सपनों के संसार में इस कदर खो चुकी थी कि वह यह जान ही नहीं पायी कि जिस भरोसे को वह जिन्दगी जान रही है वह इक छलावा मात्र है। उसकी आंखों में तो सतरंगी सपने तैर रहे थे और वह दिन-ब-दिन उसमें डूबती जा रही थी। उसकी आंखें कहने को तो खुली थी पर उस इक शख्स के प्यार और उसके भरोसे के सिवा और कुछ नजर ही नहीं आ रहा था उसको