बेहिस
बाहर तेज हवा चल रही थी.... और बर्फबारी भी हो रही थी। भीगा हुआ तो उसका भी मन था और कानों में किसी के बेवफाई भरे अल्फाज़ गूंज रहे थे। वह यकीन ही नहीं कर पा रही थी कि यह वही शख्स है जिसने कभी उसके अश्कों को पोंछ कर कहा था कि वह सिर्फ उसका है और किसी की कोई जगह नहीं है और भी न जाने क्या क्या। और कल उसके इक सवाल के पूछने पर कितनी आसानी से कह दिया कि मत रहो साथ। कितना कुछ टूट गया उसके अन्दर और किसी को कुछ सुनाई नहीं दिया। शायद मैं चुपके से टूटी थी या इस बार किरच किरच करके बिखरी थी जो किसी को सुनाई नहीं दिया। यूं तो सुनने वाले ख़ामोशी की आवाज़ भी सुन लेते हैं गर दिलों में बेपनाह मुहब्बत हो और यहां तो उस शख्स के रूबरू मेरा कोई वजूद ही नहीं है। पर इक वक्त था जब ऐसा नहीं था पर वह सब बीत गया और बीता वक्त भला कहीं वापस आया है। अब वह बेहद थक चुकी थी.... टूट चुकी थी किसी की बेवफ़ाई के थपेड़ों से. खुद को समेटना चाहती थी....... पर वह लाख कोशिशों के बावजूद कुछ नहीं कर पा रही थी.... काश यूं टूट कर न चाहा होता उसने उस शख्स को..... इबादत की उसकी और इबादत तो रब की कई जाती है और रब कहीं बदल...